कैसे और क्यों डूबीं श्री कृष्ण जी की द्वारिका नगरी: कैसे हुआ श्री कृष्ण जी और उनके पुरे यादव कुल का अंत

साल 1963 यह वह दिन था जब आर्कियोलॉजिस्ट की एक टीम अरब सागर में कुछ रिसर्च करने के लिए उतरती है लेकिन तब उन्हें अरब सागर के अंदर एक ऐसी चीज दिखाई देती है जिसे देखकर उनके होश उड़ जाते हैं……… इस टीम को अरब सागर में एक पुरानी और काफी सुंदर नगरी दिखाई देती है जिसकी जबरदस्त और खूबसूरत नकाशी थी और बड़ी-बड़ी मजबूत दीवारें थी जो कि आज भी यूं की यु खड़ी थी और जिसके बड़े-बड़े दरवाजे थे और नगर के बीच में था एक बड़ा सा महल जिसमें रखी थी श्री कृष्ण जी महाराज की मूर्ति.

तो क्या सच में यह श्री कृष्ण जी के द्वारा बसाई गई द्वारिका नगरी थी अगर यह द्वारिका नगरी थी तो यह समुद्र के इतने नीचे कैसे पहुंची क्या है द्वारिका नगरी का राज और कैसे श्री कृष्ण जी का अंत हुआ और कैसे उनकी नगरी समुद्र में डूबी और क्या यह सब कुछ एक श्राप के चलते हुआ था चलिए जानते हैं आज की इस मजेदार पोस्ट में |

कैसे और क्यों डूबीं श्री कृष्ण जी की द्वारिका नगरी

कैसे बसाई श्री कृष्ण जी ने द्वारिका नगरी

दोस्तों इस पूरी कहानी की शुरुआत होती है उस समय से जब श्री कृष्ण जी ने कंस का वध किया था और कंस का वध करने के बाद श्री कृष्ण जी अपने पूरे यादव वंश के साथ मथुरा रहने के लिए चले गए और वहां पर शासन करने लगे.

लेकिन कंस के वध के बाद कंस की मौत का बदला लेने के लिए कंस के ससुर ने मथुरा पर 15 से 17 बार आक्रमण किया और बार-बार मथुरा पर हो रहे आक्रमणों से मथुरा की पूरी प्रजा दुखी थी इसीलिए उन्होंने श्री कृष्ण जी से गुहार लगाई |

श्री कृष्ण जी ने छोड़ा मथुरा

दोस्तों जब कंस के ससुर के आक्रमणों से मथुरा की प्रजा और श्री कृष्ण जी खुद भी बहुत परेशान थे इसीलिए उन्होंने मथुरा वासियों को सुरक्षित करने के लिए और उन्हें इस आक्रमण से बचने के लिए मथुरा को छोड़ने का फैसला लिया……..

और वह एक दिन मथुरा से बहुत दूर अरब सागर के किनारे अपनी प्रजा को और अपने पूरे परिवार को लेकर चले गए |

कैसे और क्यों डूबीं श्री कृष्ण जी की द्वारिका नगरी: कैसे और क्यों मिला श्री कृष्ण जी के पुत्र को श्राप और हुआ यादव कुल का सर्वनाश

समुन्द्र देव ने दी कृष्ण जी को धरती दान और हुआ द्वारिका नगरी का निर्माण

दोस्तों जब कृष्ण जी मथुरा और छोड़कर अपनी प्रजा के साथ अरब सागर के किनारे पहुचे तो वहां पर जाकर उन्होंने विश्वकर्मा को कहा कि वह समुद्र के ऊपर एक विशाल और सुंदर द्वारिका नगरी का निर्माण करें लेकिन यह निर्माण बिना समुद्र देव की मर्जी के नहीं हो सकता था.

इसीलिए सबसे पहले श्री कृष्ण जी ने समुद्र देव को प्रसन्न किया जिससे कि समुद्र देव ने प्रसन्न होकर श्री कृष्ण जी भगवान को द्वारिका नगरी बसाने के लिए एक भूमि उपहार में दी फिर उसी भूमि पर विश्वकर्मा जी ने द्वारिका नगरी का निर्माण किया |

कैसी थी द्वारिका नगरी

दोस्तों कहते है की श्री कृष्ण जी की द्वारिका नगरी आज की किसी हाइटेक सिटी से काम नहीं थी इस नगरी में बहुत सारे बड़े-बड़े महल थे और बड़ी-बड़ी दीवारें और बहुत सारे दरवाजे थे और दोस्तों इस अद्भुत द्वारिका नगरी में सोने और रजत से जड़े हुए 7 लाख से ज्यादा महल मौजूद थे और बहुत सारे उद्यान थे और बहुत सारी झील भी थी.

और ये सब कुछ हो भी क्यों ना क्योंकि यह नगरी ना खुद भगवान श्री कृष्ण जी की थी तो इसे सुंदर और खास तो होना ही था…….

और इस नगरी के बीचो-बीच था एक बड़ा सोने और रतन से जुड़ा हुआ महल जिसमें था चांदी और हीरो से जुड़ा हुआ एक सिंहासन जिस पर बैठते थे भगवान श्री कृष्ण जी और बैठकर राज किया करते थे और श्री कृष्ण जी के शासनकाल में पूरी प्रजा सुखी और प्रसन्न थी क्योंकि इसी बिच श्री कृष्ण जी ने कंस के ससुर का भी वध कर दिया था |

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श्री कृष्ण के बेटे को मिला श्राप

दोस्तों जब सब कुछ सही चल रहा था लेकिन कहते हैं ना समय का पहिया चलता है और दिन ढलते जाते हैं इसी प्रकार अब वह दिन भी आ चुका था जब श्री कृष्ण जी और उनके पूरे यादव कल का सर्वनाश होना था और पूरी द्वारिका की नगरी को पानी में डूबना था.

क्योंकि दोस्तों इस युग में श्री कृष्ण जी ने जन कल्याण के लिए मानव का रूप लिया था और मानव के रूप में सुख और दुख तो आना लाजमी ही था इसीलिए दोस्तों श्री कृष्ण जी के भी जीवन में सुख दुख तो आना ही था.

यह बात है उसे समय की जब श्री कृष्ण जी के पुत्र सांब अपने मित्रो के साथ हंसी ठिटोली कर रहे थे लेकिन तभी द्वारिका में महर्षि विश्वामित्र और कण्व ऋषि आते हैं उन्हें देखकर सांब और उनके मित्रो की नजर उन महर्षियों पर पड़ती है और वह उनसे हंसी ठिटोली करने की सोचते हैं.

 

लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि यही ही हंसी ठिटोली एक दिन उनके वंश के डूबने का कारण बनेगी दरअसल दोस्तों ऋषियों से हंसी मजाक करने के लिए श्री कृष्ण जी के पुत्र सांब एक स्त्री का रूप धारण करते हैं और ऋषियों से कहते हैं कि बताइए इस स्त्री के गर्भ से क्या उत्पन्न होगा.

युवको के इस परिहास से ऋषि मुनि बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं और वह सांब को श्राप दे देते हैं कि इसके गर्भ से एक लोहे के मुसल का जन्म होगा जो कि पूरे यादव कुल के सर्वनाश का कारण बनेगा जब इस पूरी घटना का पता श्री कृष्ण जी को चला तो उन्हें विश्वास हो गया कि यह पुण्य ऋषि मुनियों का श्राप है व्यर्थ नहीं जाएगा श्राप अपना रंग जरूर दिखाएगा |

सांब ने उत्पन किया लोहे का मुसल

दोस्तों जब ऋषियों ने सांब को श्राप दिया कि इसके गर्भ से एक लोहे के मुसल का जन्म होगा जो कि पूरे यादव कुल के सर्वनाश का कारण बनेगा और इस घटना के अगले दिन ही सांब ने एक मुसल को उत्पन्न किया जिसे बाद में राजा उग्रसेन ने छोटे-छोटे टुकड़ों में कटवा कर समुद्र में फिकवा दिया था क्योंकि उन्हें लगा कि ऐसा करके उन्होंने यादव कुल को समाप्त होने से बचा लिया है पर ऐसा कुछ भी होने वाला नहीं था क्योंकि भगवान श्री कृष्ण जी भी जानते थे कि यह ऋषियों का श्राप है व्यर्थ नहीं जाएगा |

श्री कृष्ण जी ने की अपने राज्य में घोषणा 

दोस्तों इस घटना के बाद श्री कृष्ण जी ने भी अपने यादव कुल को बचाने के लिए अपने राज्य में घोषणा करवा दी की कोई भी नगरवासी अपने घर में मदिरा का सेवन नहीं करेगा और ना ही कोई व्यक्ति नगर में मदिरा बनाएगा क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि मदिरा की वजह से लोग आपस में लड़े और उनका सर्वनाश हो लेकिन दोस्तों वह कहते हैं ना चाहे कुछ भी हो श्राप तो अपना रंग दिखायेगा |

36 साल बाद श्राप ने दिखाया अपना असर

इसी प्रकार समय का पहिया चलता है और इस पूरी घटना को 36  साल बीत जाते हैं और अब वो समय आ चुका था जब श्राप को अपना रंग दिखाना था और श्री कृष्ण जी और उनके कुल का नाश होना था…….

दरअसल दोस्तों जिस मुसल को नष्ट करके राजा उग्रसेन ने समुद्र में फिकवा दिया था उसे मुसल के टुकड़ों को एक मछली ने निगल लिया था और वह मछली एक दिन एक मछुआरे के हाथ लगती है जिसने जब उसे मछली को घर पर जाकर काटा तो उसने पाया कि उस मछली के पेट के अंदर लोहे के टुकड़े हैं तब उसने उन लोहे के टुकड़ों को एक लोहार को बेच दिया फिर उस लोहार ने उन लोहे के टुकड़ों को जोड़कर एक तीर बनाए और उस तीर को उसने एक शिकारी को बेच दिया |

उधर श्री कृष्ण जी ने सभी यादव वंशीयो से कहा कि तुम तीर्थ पर जाओ और श्री कृष्ण जी की बात मानकर सभी यादव वंशी तीर्थ पर चले जाते हैं और नगर से काफी दूर चलने के बाद वो विश्राम करने के लिए एक जगह रुकते हैं तभी उनकी आपस में बहस हो जाती है और देखते ही देखते यह बहस इतनी ज्यादा बढ़ जाती है और सभी मार काट पर उतर आते और ये छोटी सी बहस युद्ध में बदल जाती है,

और वो एक दूसरे को मारने के लिए जब भी ये लोग किसी घास के तिनके को उठाते हैं तो वही तिनका वही मुसल बन जाता है जो की साम्ब ने उत्पन किया था और यह मुसल इतना खतरनाक होता है कि अगर किसी व्यक्ति को एक बार लग जाए तो उसे व्यक्ति की मौत हो सकती थी इसीलिए इस लड़ाई में मुसल लगने से श्री कृष्ण जी के पुत्र साम्ब की मृत्यु हो जाती है.

जब श्री कृष्ण जी को इस बात का पता चलता है और वहां पर आकर उन्होंने अपने पुत्र की लाश को देखी तब वह काफी ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं और गुस्से में आकर श्री कृष्ण जी घास के तिनके को उठाते हैं और वह तिनका तुरंत एक मुसल बन जाता है और वह बचे हुए अपने सभी प्रियजनों को भी अपने पुत्र की तरह ही मार डालते हैं |

कैसे और क्यों डूबीं श्री कृष्ण जी की द्वारिका नगरी: कैसे और क्यों मिला श्री कृष्ण जी के पुत्र को श्राप और हुआ यादव कुल का सर्वनाश

कैसे हुआ श्री कृष्ण जी का अंत और कैसे त्यागी कृष्ण जी ने अपनी देह

दोस्तों अब यादव वंश में केवल श्री कृष्ण जी और उनके भाई बलराम ही बचे थे और इस पूरी घटनाक्रम के बाद बलराम काफी ज्यादा दुखी हुए और उन्होंने अपनी देह का त्याग कर दिया और एक शेष नाग का रूप धारण कर लिया और समुद्र में चले गए थे कृष्ण जी भी इस घटना से काफी ज्यादा परेशान हुए और दुख में आकर वह जंगल की तरफ चल दिए और आगे चलकर एक पेड़ के नीचे विश्राम करने लगे जहां पर एक शिकारी ने उनके पैर के अंगूठे में तीर मार दिया क्योंकि उस शिकारी को लगा कि यह कोई हिरण का सर है.

और यह तीर जहरीला था जिसकी वजह से श्री कृष्ण जी की मौत हो जाती है बाद में आकर शिकारी उनसे माफी भी मांगता है लेकिन तब तक बहुत ज्यादा देर हो चुकी थी और दोस्तों यह वही तीर था जिसे उस लोहार ने उन छोटे-छोटे लोहे के टुकड़ों से जोड़कर बनाया था |

इस प्रकार ऋषियों का श्राप रंग लाया और श्री कृष्ण जी के साथ ही पूरे यादव वंश का अंत हो गया और बाद में पूरी द्वारिका नगरी अरब सागर में समा गई हालांकि द्वारिका नगरी के बच्चों और महिलाओं को अर्जुन ने आकर बचा लिया था और वह उन्हें अपने साथ ले गए थे और श्री कृष्ण जी की मौत के बाद ही उनका पूरा यादव वंशी समाप्त हो गया |

द्वारिका नगरी के डूबने के पीछे दूसरा कारण ( गांधारी ने दिया श्री कृष्ण जी की श्राप )

दोस्तों द्वारिका नगरी के डूबने का दूसरा सबसे बड़ा कारण गांधारी के श्राप को भी माना जाता है कहानियों के अनुसार जब श्री कृष्ण जी ने कंस के ससुर का वध किया उसके बाद ही महाभारत का युद्ध में शुरू हो गया जिसमें श्री कृष्ण जी ने पांडवों का साथ दिया और अर्जुन के सार्थी बने और जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ और पांडव जीत गए.

और 100 कोरवो की मौत हो गई तब जब यह मंजर माता गांधारी ने देखा तो वह काफी ज्यादा क्रोधित हुई अपने 100 पुत्रों की शवों को देखकर तब उन्होंने क्रोध में आकर श्री कृष्ण जी को अपने पुत्रों की मौत का जिम्मेदार ठहराया और उन्होंने क्रोध में आकर श्री कृष्ण जी को श्राप दे दिया कि जिस प्रकार तुम्हारी वजह से मेरे कुल का नाश हुआ है.

उसी प्रकार आने वाले समय में तुम्हारे पूरे यादव कल का सर्वनाश होगा और तुम्हारी पूरी द्वारिका नगरी समुद्र में डूब जाएगी और दोस्तों अंत में हुआ भी कुछ ऐसा ही श्री कृष्ण जी की मौत के साथ ही पूरी की पूरी द्वारिका नगरी समुद्र में डूब गए जो कि आज भी अरब सागर में मौजूद बताई जा रही है.

दोस्तों कहते है की सर्वनाश के लिए तो एक ही श्राप काफी होता है लेकिन यहां पर तो श्री कृष्ण जी को दो-दो श्राप मिले थे और इन्ही दो श्रापों की वजह से पूरे यादव कुल और द्वारिका नगरी का अंत हुआ था दोस्तों यह नगरी आज भी अरब सागर में मौजूद है.

जिसमें बहुत सारे बड़े-बड़े दरवाजे हैं और यह पूरी नगरी आज भी अद्भुत दिखाई देती है जिसे सबसे पहले 1963 में एक एस्कवेशन डेक्कन कॉलेज पुणे डिपार्टमेंट ऑफ़ आर्कियोलॉजी और गुजरात सरकार ने मिलकर खोजा था जिसमें बहुत सारे पत्थरों और बर्तनों के सैंपल लिए गए जिनकी बाद में जांच की गई तो पता चला कि यह पत्थर और बर्तन महाभारत काल के युद्ध से पहले के हैं.

यानी कि यह नगरी वही नगरी है जो कि श्री कृष्ण जी ने अरब सागर के किनारे बसाई थी जो कि दो श्रापों की वजह से ही समुद्र में डूब गई जो कि आज भी समुद्र में देखने को मिलती है जिसकी नकाशी काफी ज्यादा सुंदर बताई जा रही है

दोस्तों इस प्रकार पूरे यादव वंश और श्री कृष्ण जी का अंत हुआ और उनकी बसाई गई द्वारिका नगरी समुद्र में डूब गई |

निष्कर्ष

दोस्तों मैं आशा करता हूँ की आपको ये श्री कृष्ण जी और उनकी द्वारिका नगरी की कहानी जरुर पसंन्द आई होगी मैंने आपको बड़ी ही सरल भाषा में बताया है की कैसे दो श्रापो के चलते श्री कृष्ण जी और उनकी द्वारिका नगरी का अंत हुआ था इसीलिए प्लीज इस पोस्ट को अपने दोस्तों से शेयर जरुर करे |

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